रूप चतुर्दशी हिंदू पंचांग में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (अमावस्या से एक दिन पहले) को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिवाली के मुख्य दिन से ठीक पहले और नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के समान ही पड़ता है।
"रूप" शब्द का अर्थ है "सुंदरता" या "कांति", और "चतुर्दशी" का अर्थ है "चौदहवाँ दिन"। इस प्रकार, यह मूल रूप से "सुंदरता का चौदहवाँ दिन" है।
महत्व और कथाएँ
इस दिन के दो प्रमुख महत्व हैं - एक आध्यात्मिक और एक पौराणिक।
1. राजा बलि की कथा (नरक चतुर्दशी से जुड़ी):
इस दिन से जुड़ी सबसे प्रचलित कथा भगवान कृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर के वध की है। नरकासुर एक शक्तिशाली और अत्याचारी राक्षस था जिसने 16,000 राजकुमारियों को बंदी बना रखा था। उसकी माँ, भूदेवी, ने उसके कल्याण के लिए प्रार्थना की। कृष्ण (और उनकी पत्नी सत्यभामा) के हाथों मृत्यु होने पर, नरकासुर को अपनी गलतियों का एहसास हुआ। मरने से पहले, उसने विनती की कि उसकी मृत्यु का शोक न मनाकर दीप जलाकर उत्सव मनाया जाए। इसीलिए यह दिन दीये जलाने और उत्सव के साथ चिह्नित है, जो बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है।
2. अप्सरा रंभा और सुंदरता के महत्व की कथा:
एक कम प्रचलित लेकिन बहुत प्रासंगिक कथा "रूप" के पहलू की व्याख्या करती है। ऐसा माना जाता है कि देवांगना रंभा ने एक श्राप के कारण खोई हुई अपनी दिव्य सुंदरता और कांति को वापस पाने के लिए इस दिन कठोर तपस्या की और देवी लक्ष्मी की पूजा की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, देवी लक्ष्मी ने उसकी सुंदरता को कई गुना बढ़ा दिया।
यह कथा इस दिन को शारीरिक और आध्यात्मिक सुंदरता को बढ़ाने और बनाए रखने के लिए समर्पित करने का मुख्य कारण है।
रीति-रिवाज और उत्सव
रूप चतुर्दशी के रीति-रिवाज शुद्धिकरण, पूजा और आत्म-सेवन का एक सुंदर मिश्रण हैं।
* अभ्यंग स्नान (पवित्र तेल स्नान): सबसे महत्वपूर्ण रिवाज सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करना है। लोग स्नान से पहले अपने शरीर और बालों पर उबटन (चंदन, हल्दी, गुलाब जल, आटा और अन्य जड़ी-बूटियों से बना पेस्ट) या सुगंधित तेल लगाते हैं। मान्यता है कि यह रिवाज शरीर को शुद्ध करता है, पापों को धोता है और त्वचा की कांति को बढ़ाता है, इसे सोने की तरह चमकदार बनाता है।
* देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण की पूजा: लोग धन, समृद्धि और सुंदरता की देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण/विष्णु की कल्याण और विजय के लिए पूजा करते हैं।
* दीप जलाना: छोटी दिवाली की तरह, लोग शाम को बुरी आत्माओं को दूर भगाने और समृद्धि व खुशी का स्वागत करने के लिए मिट्टी के दीये जलाते हैं।
* काजल लगाना: दीये की कालिख को थोड़ा सा काजल के रूप में लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि यह आँखों की रक्षा करता है और नजर दोष को दूर करता है।
* स्व-सेवन और नए वस्त्र: यह दिन सजने-संवरने, नए कपड़े पहनने और खुद को सजाने के लिए आदर्श माना जाता है, जो "रूप चतुर्दशी" नाम को सार्थक करता है।
आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ
शारीरिक रीति-रिवाजों से परे, रूप चतुर्दशी का एक गहरा अर्थ है:
* आंतरिक और बाहरी सुंदरता: यह दिन इस बात का प्रतीक है कि सच्ची सुंदरता आंतरिक पवित्रता (पवित्र स्नान और प्रार्थना से प्राप्त) और बाहरी कांति का मेल है। उबटन और तेल शरीर को शुद्ध करते हैं, जबकि प्रार्थना आत्मा को शुद्ध करती है।
* दिवाली की तैयारी: यह स्वयं को शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करके, दिवाली के मुख्य दिन देवी लक्ष्मी का एक स्वच्छ और सुंदर घर व हृदय में स्वागत करने की तैयारी का दिन है।
संक्षेप में
| विशेषता | विवरण |
| अर्थ | "सुंदरता का चौदहवाँ दिन" |
| कब | कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी |
| महत्व | बुराई पर अच्छाई की जय; शारीरिक और आध्यात्मिक सुंदरता बढ़ाना |
| मुख्य रीति-रिवाज | अभ्यंग स्नान (उबटन/तेल के साथ), लक्ष्मी और कृष्ण की पूजा, दीप जलाना |
| मुख्य कथा | नरकासुर का वध; अप्सरा रंभा द्वारा अपनी सुंदरता वापस पाना |
संक्षेप में, रूप चतुर्दशी दिवाली का एक सुंदर प्रस्तावना है, जो हमें केवल अपने घरों को ही नहीं, बल्कि अपने शरीर और मन को भी शुद्ध करने की याद दिलाती है, और उस दिव्य प्रकाश और सुंदरता का जश्न मनाने की याद दिलाती है जो हमारे भीतर और हमारे आस-पास विद्यमान है।
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