वीर्य शरीर की बहुत मूल्यवान् धातु है । भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया बड़ी लम्बी है | श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा है : रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते | मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जायाः शुक्रसंभवः ॥ जो भोजन पचता है , उसका पहले रस बनता है । पाँच दिन तक उसका पाचन होकर रक्त बनता है । पाँच दिन बाद रक्त में से मांस , उसमें से 5-5 दिन के अंतर से मेद , मेद से हड्डी , हड्डी से मज्जा और मज्जा से अंत में वीर्य बनता है । स्त्री में जो यह धातु बनती है उसे ‘ रज ‘ कहते हैं । वीर्य किस प्रकार छः सात मंजिलों से गुजरकर अपना यह अंतिम रूप धारण करता है , यह सुश्रुत के इस कथन से ज्ञात हो जाता है । कहते हैं कि इस प्रकार वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घण्टे लग जाते हैं । वैज्ञनिक लोग कहते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है । आकर्षक व्यक्तित्व का कारण इस वीर्य के संयम से शरीर में एक अदभुत आकर्षक शक्ति उत्पन्न होती है जिसे प्राचीन वैद्य धन्वंतरि ने ‘ ओज ‘ नाम दिया है । यही ओज मनुष्य को अपने परम – लाभ ‘ आत्मदर्शन ‘ कराने में सहायक बनता है ...